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धान की खेती

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

धान की बेहतरीन पैदावार के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिश्रित करनी है। आज कल देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की रोपाई की वजह खेत पानी से डूबे हुए नजर आ रहे हैं। किसान भाई यदि रोपाई के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें तो उन्हें धान की अधिक और अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार मिल सकती है। अमूमन धान की रोपाई जून के दूसरे-तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे-चौथे सप्ताह के मध्य की जाती है। रोपाई के लिए पंक्तियों के मध्य का फासला 20 सेंटीमीटर और पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक स्थान पर दो से तीन पौधे रोपने चाहिए। धान की फसल के लिए तापमान 20 डिग्री से 37 डिग्री के मध्य रहना चाहिए। इसके लिए दोमट मिट्टी काफी बेहतर मानी जाती है। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को तैयार करना चाहिए। साथ ही, खेत की सुद्रण मेड़बंदी करनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज्यादा समय तक संचित रह सके।

धान शोधन कराकर खेत में बीज डालें

धान की बुवाई के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के अनुसार बिजाई करनी चाहिए। साथ ही, एक हेक्टेयर रोपाई करने के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। हालांकि, इससे पहले बीज का शोधन करना आवश्यक होता है। ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

खाद और उवर्रकों का इस्तेमाल किया जाता है

धान की बेहतरीन उपज के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिलाते हैं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं।

बेहतर सिंचाई प्रबंधन किस प्रकार की जाए

धान की फसल को सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। रोपाई के उपरांत 8 से 10 दिनों तक खेत में पानी का बना रहना आवश्यक है। कड़ी धूप होने पर खेत से पानी निकाल देना चाहिए। जिससे कि पौध में गलन न हो, सिंचाई दोपहर के समय करनी चाहिए, जिससे रातभर में खेत पानी सोख सके।

कीट नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिए जुताई, मेंड़ों की छंटाई और घास आदि की साफ सफाई करनी चाहिए। फसल को खरपतवारों से सुरक्षित रखना चाहिए। 10 दिन की समयावधि पर पौध पर कीटनाशक और फंफूदीनाशक का ध्यान से छिड़काव करना चाहिए।
संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

कोविड-19 के प्रभाव के चलते इस बार धान की रोपाई के लिए मजदूरों का संकट हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। धान की सीधी बिजाई इसका श्रेष्ठ समाधान है। धान की खेती सीधी बुवाई कम पानी वाले, जलभराव वाले एवं वर्षा आधारित खेती वाले सभी इलाकों में की जा सकती है। 

धान तिलहन है या दलहन

धान ना तो तिलहन है ना दलहन है। दलहनी फसल में होती है जिनमें से तेल निकलता है यानी सरसों अरंडी तिल अलसी आदि। दलहनी फसलें वह होती है जिनकी दाल बनाई जाती है यानी चना उर्दू मून मशहूर राजमा आदि। धान अनाज है खाद्यान्न है। 

क्या है सीधी बिजाई का तरीका

 

 धान की सीधी बिजाई गेहूं जो जैसी फसलों की तरह ही की जाती है। बिजाई के लिए धाम को नर्सरी डालने की तरह ही 12 घंटे पानी में भिगोया जाता है उसके बाद जूट के बैग में अंकुरित होने के लिए रखा जाता है।कार्बेंडाजिम 223 जैसे किसी फफूंदी नाशक से उपचारित किए हुए इस बीच को थोड़ा खुश्क करके बो दिया जाता।

क्या है सीधी बिजाई के फायदे

इस तकनीकी से धान की फसल लगाने से उत्पादन लागत में भारी कमी आती है। 50 से 60% तक डीजल की बचत होती है। 30 से 40 फ़ीसदी श्रमिकों पर होने वाले खर्चे में बचत होती है। उर्वरकों के उपयोग में भी इजाफा होता है। इस तरह धान की फसल लेने से जहरीली मीथेन गैस का उत्सर्जन भी बेहद कम हो जाता है जोकि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अहम है। 


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कब करें धान की बुवाई

धान की खेती बुवाई मानसून आने से 10 से 15 दिन पूर्व कर देनी चाहिए। इससे पूर्व खेत को तीन से चार बार एक एक हफ्ते के अंतराल पर गहरा जोतना चाहिए। जुताई के बीच में अंतराल इसलिए रखना चाहिए ताकि जमीन ठीक से सीख जाए और उसमें मौजूद हानिकारक फफूंदी नष्ट हो जाएं। खेतों को कभी एक ही बार में तीन से चार बार नहीं जोतना चाहिए। 

सीधी बिजाई के लिए धान की किस्में

धान की सीधी बिजाई के लिए पूसा संस्थान की सुगंध 5, 1121, पीएचवी 71, नरेंद्र 97, एमटीयू 1010, एच यू आर 3022, सियार धान 100 किस्म प्रमुख हैं। 

बीज दर

सीधी बिजाई के लिए मोटे धान की 20 से 25 किलोग्राम बीज एवं बारीक धान की 10 से 12 किलोग्राम बीज को अंकुरित करके बोया जा सकता है। 

उर्वरक प्रबंधन

धान की सीधी बिजाई के लिए आखरी जुताई की समय 50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश एवं 25 किलोग्राम जिंक को आखरी जुताई में मिला देना चाहिए। जिंक और फास्फोरस को एक साथ नहीं मिलाना चाहिए अन्यथा फास्फोरस निष्प्रभावी हो जाता है। 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन की जरूरत होती है इसकी एक तिहाई मात्रा जुताई में मिला दें बाकी फसल बढ़वार के लिए प्रयोग में लाएं। 

खरपतवार नियंत्रण

धान की सीधी बुवाई के बाद पेंडा मैथलीन दवा की एक किलोग्राम मात्रा को पर्याप्त पानी में घोलकर बुवाई के 24 घंटे के अंदर मिट्टी पर छिड़क देना चाहिए ताकि खरपतवार उगें ही नहीं। फसल बढ़वार के समय उगने वाले खरपतवार को मारने के लिए नॉमिनी गोल्ड दवा का छिड़काव करें।

कैसे डालें धान की नर्सरी

कैसे डालें धान की नर्सरी

किसी भी फसल की नर्सरी डालना सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है क्योंकि अनेक तरह के रोग संक्रमण नर्सरी से शुरू होकर आखरी फसल पकने तक परेशान करते हैं। इनमें मुख्य रूप से जीवाणु और विषाणु जनित रोग प्रमुख हैं। 

धान की नर्सरी (paddy nursery)

एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए महीन धान 30 किलोग्राम,मध्यम धान 35 किलोग्राम और मोटे धान का 40 किलोग्राम बीज को तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। एक हेक्टेयर की नर्सरी से लगभग 15 हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई हो जाती है। धान की नर्सरी डालने से पहले पौधों वाली क्यारी को खेत से 1 से 2 इंची ऊंचा उठा लें ताकि गर्मी के समय में यदि क्यारी में पानी ज्यादा लग जाए तो उसे निकाला जा सके।

क्यारी उपचार

 

 धान की नर्सरी डालने से पूर्व एक कुंतल सड़े हुए गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राइकोडरमा मिला लें और उसे पेड़ की छांव में पानी के छींटे मार कर रखते हैं। 7 दिन तक पानी के छींटे मारते हुए स्थान को पलटते रहें। इसके बाद धान की नर्सरी जिस क्यारी में डालनी है उसमें इसे मिला दें। ऐसा करने से जमीन में मौजूद सभी हानिकारक फफूंदियां नष्ट हो जाएंगी। 

उर्वरक प्रबंधन

 

 एक हेक्टेयर नर्सरी डालने के लिए खेत में 100 किलोग्राम नत्रजन एवं 50 किलोग्राम फास्फोरस का प्रयोग करें।ट्राइकोडरमा का एक छिड़काव नर्सरी लगने के 10 दिन के अंदर पर कर देना चाहिए।मौत के 10 से 15 दिन का होने पर एक सुरक्षात्मक छिड़काव खैरा सहित विभिन्न रोगों से सुरक्षा के लिए कर देना चाहिए। पांच किलोग्राम जिंक सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया, या ढाई किलोग्राम बुझे हुए चूने के साथ 1000 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिड़काव बुवाई के 10 दिन बाद दूसरा 20 दिन बाद करना चाहिए। सफेदा रोग का नियंत्रण करने के लिए 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का 20 किलो यूरिया के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। झोंका रोग की रोकथाम के लिए 500 ग्राम कार्बन डाई, 50% डब्ल्यूपी का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। भूरा धब्बा रोग से बचाव के लिए दो किलोग्राम जिंक मैग्नीस कार्बोमेट का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। नर्सरी में लगने वाले कीड़ों से पौधों को बचाने के लिए 1 लीटर फेनीट्रोथियान 50 ईसी, 1. 25 लीटर क्नायूनालफास 25 ईसी या 1.5 लीटर क्लोरो पायरी फास 20 ईसी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें। 

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समय-समय पर पद की क्यारी में पानी लगाते रहे और इस बात का जरूर ध्यान रखें की पानी शाम को लगाएं। सुबह तक क्यारी पानी को पी जाए इतना ही पानी लगाएं। ज्यादा पानी लगाने और पानी के क्यारी में ठहर जाने से पौध मर सकती है।

बीज का भिगोना

धान के बीज को अंकुरण के लिए भिगोने से पूर्व 100 किलो पानी में 2 किलो नमक डालकर बीज को उसमें डालें। इससे संक्रमित थोथा और खराब बीज ऊपर तैर आएगा। खराब बीज को फेंक दें। अच्छे बीज को नमक के घोल से निकाल कर तीन चार बार साफ पानी में धो लें ताकि नमक का कोई भी अंश बीज पर ना रहे।

धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

धान की खेती की रोपाई का आखिरी सीजन चल रहा है। जो किसान भाई अपने खेतों में धान के पौधों की रोपाई कर चुके हो वह यह न मान कर चलें कि खेती का काम समाप्त हो गया है। खेती के बारे में कहा जाता है कि खेती का काम कभी समाप्त ही नहीं होता है। एक फसल कटने के बाद दूसरे फसल की तैयारी शुरू हो जाती है। जो किसान भाई धान की फसल से अच्छी पैदावार चाहते हैं। यदि समय पर धान के पौधों की रोपाई कर ली हो तो उसके बाद की देखभाल करनी चाहिये। फसल की जितनी अधिक देखभाल करेंगे। समय पर खाद, पानी और निराई गुड़ाई करायेंगे, उतनी ही अच्छी पैदावार पायेंगे। ऐसे किसानों की धान की खेती से अन्य किसानों की अपेक्षा अधिक आमदनी हो सकती है। आइये हम जानते हैं कि रोपाई के बाद धान के खेत में किन-किन खास बातों का ख्याल रखना पड़ता है।

रोपाई के बाद रखें खरपतवार का ख्याल

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे पहले तो जुलाई के माह में हर हाल में धान की रोपाई हो जानी चाहिये। जिन किसान भाइयों ने धान के पौधे की रोपाई कर ली हो तो उनहें रोपाई के दो-तीन दिनों के भीतर खरपतवार को नियंत्रित करने वाली दवा डालनी चाहिये ताकि धान की फसल में अनचाही घास अपनी पकड़ न बना सके। इसके दो सप्ताह के बाद फिर खेत का अच्छी तरह से मुआयना करना चाहिये। उस समय भी खरपतवार को देखना होगा। यदि खरपतवार बढ़ रही हो तो उसका उपाय करना चाहिये। इसके अलावा खेत में यह भी देखना चाहिये कि जहां पर पौधे न उगे हों जगह खाली बच गयी हो अथवा पौधे खराब हो गये हों। उनकी जगह नये पौधे लगाने चाहिये। इस गैप को भरने से फसल भी बराबर हो जायेगी और पैदावार भी अच्छी होगी। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=QceRgfaLAOA&t[/embed]

पानी के प्रबंधन पर दें ध्यान

वर्षाकाल में धान की पौध को रोपने के बाद वर्षा का इंतजार करें और यदि वर्षा न हो तो सिंचाई का प्रबंधन करें। किसान भाइयों को रोपाई के बाद इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि एक सप्ताह तक खेत में दो इंच पानी भरा रहना चाहिय् इसके अलावा प्रत्येक सप्ताह खेत की निगरानी करते रहना चाहिये। खेत सूखता दिखे तो सिंचाई करना चाहिये। धान में फूल आते समय तथा दाने में दूध पड़ने के समय खेत में पर्याप्त नमी रखने का प्रबंध करना चाहिये। ऐसा न करने से पौधे सूख सकते हैं और उत्पादन प्रभावित हो सकती है। लेकिन कटाई से 15 दिन पहले से सिंचाई बंद करना चाहिये।

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उर्वरकों का प्रबंधन भी जरूरी

धान की खेती में अच्छी पैदावार के लिए समय पर सिंचाई के बाद  उचित समय पर खाद एवं उर्वरक का भी प्रबंधन किया जाना जरूरी होता है। धान की बुआई के समय गोबर की खाद के अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। लेकिन नाइट्रोजन का इस्तेमाल धान की रोपाई के बाद कई बार दिया जाता है। अलग-अलग किस्मों के लिए अलग-अलग तरह से उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है। 1.जल्दी पकने वाली किस्मों में बुआई से पहले प्रति एकड़ 24 किलो नाइट्रोजन, 24 किलो फॉस्फोरस और 24 किलो पोटाश को डालना चाहिये। रोपाई के बाद जब कल्ले निकलते दिखें उस समय किसान भाइयों को 24 किलो नाइट्रोजन को डालना चाहिये। इससे अच्छी पैदावार हो सकती है। 2.देर से पकने वाली फसलों के लिए प्रति एकड़ 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस और 25 किलो पोटाश बुआई के समय दिया जाना चाहिये तथा रोपाई करने के बाद जब कल्ले निकलते नजर आयेंं तो 30 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव खेतों में करना चाहिये। इससे दाने अच्छे बनते हैं। पैदावार भी अच्छी होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=BS9nx-38oGo&[/embed] 3.सुगंधित चावल के धान की फसल देर से पकती है। इस तरह की फसल के लिए प्रति एकड़ 50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फास्फोरस और 25 किलो पोटाश तो बुआई के समय डाली जानी चाहिये। इसके बाद जब कल्ले और बालियां निकलने वाले हों तो उस समय 50 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फॉस्फोरस और 12 किलो पोटाश डालनी चाहिये। इससे उत्तम क्वालिटी का धान पैदा होता है। साथ ही पैदावार बढ़ जाती है। 4.सीधी बुवाई वाली फसल में 50 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फॉस्फोरस, 20 किलो पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से बुआई के समय डाला जाना चाहिये। इसके अलावा 50 किलो नाइट्रोजन खरीद लें तो जिसके चार हिस्से कर लेना चाहिये। एक हिस्सा तो रोपाई के समय डालना चाहिये। इसका दो गुना हिस्सा कल्ले निकलते समय डालना चाहिये। इसके बाद बचा हुआ एक हिस्सा बालियां निकलते समय डालना चाहिये।

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कीट पर नजर रखें और उपाय करें

धान के पौधों की लगातार निगरानी करते रहना चाहिये क्योंंंंकि कल्ले निकलने से लेकर दाने में दूध पड़ने तक अनेक तरह के कीट एवं रोगों का हमला होता है। किसान भाइयों को चाहिये कि खेतों की निगरानी करते समय जिस कीट अथवा रोग की जानकारी मिले, उसका तुरन्त इंतजाम करना चाहिये।

सैनिक कीट

रोपाई के बाद सबसे पहले सैनिक कीट की सूंडियों के हमले का डर रहता है। यह कीट पौधों को इस प्रकार खा जाती है जैसे लगता है कि पशुओं के झुंड ने खेत को चर डाला हो। जब भी इस कीट के हमले का संकेत मिले।  उसी समय मिथाइल पैराथियान या फेन्थोएट का 2 प्रतिशत चूर्ण पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।

गंधीबग कीट

रोपाई के बाद खेतों में हमला करने वाले कीटों में गंधी बग कीट प्रमुख है। इस कीट के खेत में आक्रमण होते ही बहुत दुर्गन्ध आने लगती है। ये कीट पौधों में दूधिया अवस्था में लगता है। यह कीट दूध चूस कर दानों को खोखला कर देता है। इससे धान पर काले धब्बे बन जाते हैं और उसमें चावल नही बनते। इस कीट के आक्रमण का संकेत मिलने पर मैलाथियान धूल 5 डी 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। इसके अलावा किसान भाई क्विनालफॉस 25 ईसी दो मिली प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके अलावा एसीफेट 75 एस पी डेढ़ ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  कार्बारिल या मिथाइल पैराथियान धूल को 25-30 किलोग्राम से पानी में मिलाकर छिड़काव करने से लाभ मिलता है।

तनाच्छेदक कीट

रोपाई से लगभग एक माह बाद तनाच्छेदक कीट लगने की संभावना रहती है। यह कीट फूल व बालियों को नुकसान पहुंचाता है। इसका पता लगते ही ट्राइकोकार्ड (ततैया) एक से डेढ़ लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 6 सप्ताह तक छोड़ें। इसके अलावा कार्बोफ्रयूरॉन 3 जी या कारटैप हाइड्रोक्लोराइज 4 जी या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। क्विनॉल, क्लोरोपायरीफास का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

हरा फुदका

हरे फुदका भी ऐसा कीट होता है जो पौधों के तने का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट की खास बात यह है कि यह पत्तों में नही लगता बल्कि तने में चिपका रहता है। काले, भूरे व सफेद रंग के ये फुदके फसल के लिए काफी खतरनाक होते हैं। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कार्बोरिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर या बुप्रोफेजिन 25 एस एस 1 मिली प्रति लीटर का प्रति प्रयोग करना चाहिये। इससे लाभ होगा। इसके अतिरिक्त  इमिडाक्लोरोप्रिंड 17.8 एसएस, थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यूपी, बीबीएमसी 50 ईसी का भी प्रयोग किसान भाई कर सकते हैं। यदि आपका खेत बस्ती के आसपास है तो आपको चूहों से भी सतर्क रहना होगा। चूहों के नियंत्रण के लिए आसपास के खेत वालों के साथ मिलकर उपाय करने होंगे पहले विषरहित खाद्य चूहों को देना चाहिये। एक सप्ताह बाद जिक फॉस्फाइड मिला खाद्यान्न देना चाहिये। इससे चूहे समाप्त हो सकते हैं। इसक अलावा कटाई, मड़ाई समय पर करनी चाहिये। मड़ाई के बाद अच्छी तरह सुखाने आदि का प्रबंधन भी किसान भाइयों को करना चाहिये।
बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर के करीब बंजर जमीन है। वहीं, 11001 हेक्टेयर पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जगहों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। बतादें कि धान बिहार की मुख्य फसल है। नवादा, औरंगाबाद, पटना, गया, नालंदा और भागलपुर समेत तकरीबन समस्त जनपदों में धान की खेती की जाती है। मुख्य बात यह है, कि समस्त जनपदों में किसान मृदा के अनुरूप भिन्न-भिन्न किस्मों के धान की खेती किया करते हैं। सबका भाव एवं स्वाद भी भिन्न-भिन्न होता है। पश्चिमी चंपारण जनपद में सर्वाधिक मर्चा धान की खेती की जाती है। विगत अप्रैल महीने में इसको जीआई टैग भी मिला था। इसी प्रकार पटना जनपद में किसान मंसूरी धान अधिक उत्पादित करते हैं। यदि बेगूसराय के किसान धान की खेती करने की तैयार कर रहे हैं। तो उनके लिए आज हम एक शानदार समाचार लेकर आए हैं, जिसकी खेती चालू करते ही उत्पादन बढ़ जाएगा।

बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु के अनुरूप दो किस्में विकसित की गईं

मीड़िया खबरों के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पूसा ने बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु को ध्यान में रखते हुए धान की दो बेहतरीन प्रजातियों को विकसित किया है। जिसका नाम राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति है। इन दोनों प्रजातियों की विशेषता यह है, कि यह कम वक्त में पक कर तैयार हो जाती है। मतलब कि किसान भाई इसकी शीघ्र ही कटाई कर सकते हैं। इसकी पैदावार भी शानदार होती है। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया है, कि जून के प्रथम सप्ताह से बेगूसराय जनपद में किसान इन दोनों धान की नर्सरी को तैयार कर सकते हैं।

यहां राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है

खोदावंदपुर के कृषि विशेषज्ञ अंशुमान द्विवेदी ने राजेंद्र श्वेता व राजेंद्र विभूति धान की प्रजाति का बेगूसराय में परीक्षण किया है। दोनों प्रजातियां ट्रायल में सफल रहीं। इसके उपरांत कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इसकी रोपाई करने की सलाह दी है। यदि किसान भाई राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति की खेती करना चाहते हैं, तो नर्सरी तैयार कर सकते हैं। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर में आकर खेती करने का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं। विशेषज्ञों के बताने के मुताबिक, बेगूसराय जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है।

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विकसित दो किस्मों से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है

बतादें, कि बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर बंजर भूमि पड़ी है। वहीं, 11001 हेक्टेयर भूमि पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जमीनों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। इस किस्म की विशेषता यह है, कि यह पानी के बिना भी काफी दिनों तक हरा भरा रह सकता है। मतलब कि इसके ऊपर सूखे का उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही, यह बेहद कम पानी में पककर तैयार हो जाती है। तो उधर राजेंद्र श्वेता प्रजाति को खेतों में पानी की आवश्यकता होती है। परंतु, इतना भी ज्यादा नहीं होती। दोनों प्रजाति की खेती से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है।
जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

भारत धान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। खरीफ के सीजन में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इस सीजन में वायुमंडल में आर्दरता होने के कारण फसल पर रोगों का प्रकोप भी बहुत होता है। धान की फसल कई रोगों से ग्रषित होती है जिससे पैदावार में बहुत कमी आती है। मेरी खेती के इस लेख में आज हम आपको धान के प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में विस्तार से बताएंगे।  

धान के प्रमुख रोग और इनका उपचार   

  1. धान का झोंका (ब्लास्ट रोग) 

  • धान का यह रोग पाइरिकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा फैलता है। 
  • धान का यह ब्लास्ट रोग अत्यंत विनाशकारी होता है।
  • पत्तियों और उनके निचले भागों पर छोटे और नीले धब्बें बनते है, और बाद मे आकार मे बढ़कर ये धब्बें नाव की तरह हो जाते है।


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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बोने से पहले बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।
  • खड़ी फसल मे रोग नियंत्रण के लिए  100 ग्राम Bavistin +500 ग्राम इण्डोफिल M -45 को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • बीम नामक दवा की 300 मिली ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
  1. जीवाणुज पर्ण झुलसा रोग यानी की (Bacterial Leaf Blight)

लक्षण 

  • ये मुख्य रूप से यह पत्तियों का रोग है। यह रोग कुल दो अवस्थाओं मे होता है, पर्ण झुलसा अवस्था एवं क्रेसेक अवस्था। 
  • सर्वप्रथम पत्तियों के ऊपरी सिरे पर हरे-पीले जलधारित धब्बों के रूप मे रोग उभरता है।
  • धीरे-धीरे पूरी पत्ती पुआल के रंग मे बदल जाती है। 
  • ये धारियां शिराओं से घिरी रहती है, और पीली या नारंगी कत्थई रंग की हो जाती है।


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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 5 ग्राम एग्रीमाइसीन में बीज को बोने से पहले 12 घंटे तक डुबो लें।
  • बीजो को स्थूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित कर लगावें।
  • खड़ी फसल मे रोग दिखने पर ब्लाइटाक्स-50 की 2.5 किलोग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 50 ग्राम दवा 80-100 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।    
  1. पर्ण झुलसा पर्ण झुलसा

भारत के धान विकसित क्षेत्रों मे यह एक प्रमुख रोग बनकर सामने आया है। ये रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूँदी के कारण होता है, जिसे हम थेनेटीफोरस कुकुमेरिस के नाम से भी जानते है। पानी की सतह से ठीक ऊपर पौधें के आवरण पर फफूँद अण्डाकार जैसा हरापन लिए हुए स्लेट/उजला धब्बा पैदा करती है।

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इस रोग के लक्षण मुख्यत पत्तियों एवं पर्णच्छद पर दिखाई पड़ते है। अनुकूल परिस्थितियों मे फफूँद छोटे-छोटे भूरे काले रंग के दाने पत्तियों की सतह पर पैदा करते है, जिन्हे स्कलेरोपियम कहते है। ये स्कलेरोसीया  हल्का झटका लगने पर नीचे गिर जाता है। सभी पत्तियाँ आक्रांत हो जाती है जिस कारण से पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है, और आवरण से बालियाँ बाहर नही निकल पाती है। बालियों के दाने भी पिचक जाते है। वातावरण मे आर्द्रता अधिक तथा उचित तापक्रम रहने पर, कवक जाल तथा मसूर के दानों के तरह स्कलेरोशियम दिखाई पड़ते है। रोग के लक्षण कल्लें बनने की अंतिम अवस्था मे प्रकट होते है। लीफ शीथ पर जल सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते है। पौधों मे इस रोग की वजह से उपज मे 50% तक का नुकसान हो सकता है।

 उपचार 

धान के बीज को स्थूडोमोनारन फ्लोरेसेन्स की 1 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करें। जेकेस्टीन या बेविस्टीन 2 किलोग्राम या इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। खड़ी फसल मे रोग के लक्षण दिखाई देते ही भेलीडा- माइसिन कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या प्रोपीकोनालोल 1 ML का 1.5-2 मिली प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।

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  1. धान का भूरी चित्ती रोग (Brown Spot)

धान का यह रोग देश के लगभग सभी हिस्सों मे देखा जा सकता है। यह एक बीजजनित रोग है। यह रोग हेल्मिन्थो स्पोरियम औराइजी नामक कवक द्वारा होता है।    ये रोग फसल को नर्सरी से लेकर दाने बनने तक प्रभावित करता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर गोलाकार भूरे रंग के धब्बें बन जाते है।  इस रोग के कारण पत्तियों पर तिल के आकार के भूरे रंग के काले धब्बें बन जाते है। ये धब्बें आकार एवं माप मे बहुत छोटी बिंदी से लेकर गोल आकार के होते है। धब्बों के चारो ओर हल्की पीली आभा बनती है।                       ये रोग पौधे के सारे ऊपरी भागों को प्रभावित करता है।    

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उपचार 

रोग दिखाई देने पर मैंकोजेब के 0.25 प्रतिशत घोल के 2-3 छिड़काव 10-12 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए। खड़ी फसल में इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोल कर प्रति एकेड की दर से छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करें।  इस लेख में आपने धान के प्रमुख रोगों और इनकी रोकथाम के बारे में जाना । मेरी खेती आपको खेतीबाड़ी और ट्रैक्टर मशीनरी से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्रोवाइड करवाती है। अगर आप खेतीबाड़ी से जुड़ी वीडियोस देखना चाहते हो तो हमारे यूट्यूब चैनल मेरी खेती पर जा के देख सकते है।  
धान की फसल की करें देखभाल

धान की फसल की करें देखभाल

धान की खेती अधिकांश इलाकों में की जाती है। इस साल कई इलाकों में कमजोर मानसून के चलते धान की फसल को बचाने के लिए किसानों को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। धान भरपूर पानी वाली फसल है लेकिन कम पानी में भी इसका उचित प्रबंधन किया जा सकता है। इस समय  धान की खेती में किन किन बातों का ध्यान रखें यह जानना जरूरी है।

धान की पछेती रोपाई  

जो किसान भाई अभी धान की रोपाई कर रहे हैं या करेंगे उन्हें कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। धान की नर्सरी काफी पुरानी हो चुकी है। इसे खेत मे रोपें तो एक से दो इंच पत्तों को किरोर को कतर लें। पुराने पत्तों के किनारों पर कई तरह के कीट अंडे दे जाते हैं। यह संक्रमण पूरे खेत में जा सकता है। पौध में से कतरे गए पत्तों को कहीं दूर फेंकें या फिर गहरे गड्ढे में दबा दें।

जड़ शोधन करें

पौध को लगाने से पूर्व कार्बन्डाजिम नामक दवा को पानी में घोल लेंं। इस पानी में पौध की जड़ों को कमसे कम एक घण्टे डूबी रहने दें। इससे फसल में आने वाले फफूंद जनित रोग जल्दी नहीं आएंगे।

पानी बचाने के लिए

कई इलाकों में बरसात कमजोर हुई है। इन इलाकों में यादि धान लगा रहे हैं तो खेत में पौध लगाने से पूर्व रोटावेटर जरूर चलवाएं या फिर पाटा लगवाएं ताकि मिट्टी दलदल बनकर ठोस हो जाए और जमीन पानी कम पिए। अन्यथा की दशा में खेत में पानी भरते भरते परेशान हो जाएंगे। खेत में ज्यादा पानी खड़ा रखेन की जरूरत नहीं है। केवल इतना पानी रखें ताकि जमीन गीली रहे और खेत में दरारें न पड़ें।

बढ़वार के लिए

बढ़वार के लिए दुकानों पर कई कंपनियों की सस्ती दर वाले वृद्धि नियामक की कट्टी—बाल्टी रखी होती हैं। इनके लालच में न आएं। स्तरीय कंपनी का उत्पाद ही खरीदें। यदि दुकानदार नई कंपनी का माल देने में रुचि लेता है तो उसकी गारंटी उसी से लें। साथ ही पक्का बिल अवश्य लें ताकि फसल में अपेक्षित लाभ न होने और किसी तरह का नुकसान होने पर भरपाई के लिए प्रमाण आपके पास हो। जाइम के नाम पर बिकने वाली हर चीज पर भरोसा न करेंं।

 यूरिया के साथ दें पोषक तत्व

धान में यूरिया यूं तो उर्वरकों को मिट्टी में ही मिलाना ज्यादा कारगर होता है लेकिन किसान कम से कम दो से तीन बार धान में यूरिया लगाते हैं और वैज्ञानिक भी इसकी संस्तुति करते हैं। यूरिया के साथ पांच किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से शूक्ष्म पोषक तत्व का मिश्रण मिला लिया जाए तो पौधों का विकास अच्छा होता है। फसल पर रोग प्रभाव भी कम होता है। किसान संजय बाताते हैं कि दानों में चमक भी ज्यादा बनती है।
धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की लगभग एक तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। भारत में अनेक प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। प्रत्येक फसल के बोने व काटने का समय अलग अलग होता है। इसी प्रकार धान की भी फसल है जो एक प्रकार की खरीफ की फसल है। यह हमारे देश को लोगों का एक प्रमुख खाद्यान्न है। इसके अलावा मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई जाती है वो धान है। अगर इसकी खेती में पर्याप्त सावधानी बरती जाए तो इससे किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। धान की खेती की संपूर्ण जानकारी ।

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अच्छे बीज का चयन करना। कई बार किसान महंगे बीज खरीदने के बावजूद भी अच्छी फसल नहीं उगा पता। इसका मुख्य कारण है उसके द्वारा एक स्वस्थ बीज का चयन ना कर पाना। इसके कारण चुना गया बीज महंगा नहीं बल्कि वहां की जलवायु के अनुरूप होना चाहिए। हम जानते हैं कि धान की खेती हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में की जाती है। विभिन्न हिस्सों की। जलवायु भी भिन्न भिन्न होती है इसके लिए किसानों को वहां की जलवायु के हिसाब से उन्नत बीजों का चयन करना चाहिए।

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बुवाई का समय :-

धान की फसल एक प्रकार की खरीफ की फसल है जो मुख्य रूप से बरसात शुरू होने के पहले बोई जाती है। यह फसल मई की शुरुआत में बोई जाती है, ताकि मानसून आते ही किसान धान की रोपाई शुरू कर दें। धान की फसल में मुख्य रुप से ध्यान रखने योग्य बात बीज का शोधन है इसमें किसान कई महंगे बीजों को खरीद कर फसल में अच्छी लागत नहीं पा पाते। इसके लिए किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीच के साथ बीजों का उपचार भी करना चाहिए।

बीजोपचार :-

आज की खेती में मुख्य बात बीजों का चयन करना है एवं बीजों का शोधन है। किसानों को बीजों के शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए ऐसा करने से धान की फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है धान की 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में सिर्फ 25-30 खर्च करने होते हैं। ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी बीज उपचार करने के लिए हमें एक घोल तैयार करना होता है। इस घोल को तैयार करने के लिए एक बर्तन में 10 लीटर पानी लेते हैं और उसमें लगभग 1.5 किलो नमक मिलाते हैं अब इस पानी ने एक आलू या फिर एक अंडा डालते हैं अगर आलू घील पर तैरने लगे तो समझ जाओ कि हमारा होल तैयार हो गया है और अगर आलू या अंडा घोल पर नहीं तैरता है तो पानी में उस समय तक नमक मिलाते रहें जब तक कि आलू घोल तैरने ना लगे। अब इस घोल में धीरे-धीरे करके धान के बीज डालते हैं जो भी इस घोल के ऊपर तैरने लगते हैं बेबीज कम गुणवत्ता के होते हैं उन्हें निकाल कर बाहर फेंक देना चाहिए और जो भी बोल में डूब जाते हैं वह बीज बुवाई के योग्य होते हैं। इस गोल के माध्यम से हम धान के बीजों का शोधन तीन से चार बार तक कर सकते हैं। बीजों का शोधन करने के बाद प्राप्त बीजों को तीन से चार बार पानी में अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।

क्षेत्र के हिसाब से धान की उन्नत किस्मों का चुनाव :-

हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु पाई जाती है ऐसे में धान की अच्छी फसल पाने के लिए क्षेत्र के हिसाब से बीजों का चयन भी एक प्रमुख कार्य है इसके लिए उस क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से बीजों का चयन किया जाता है।

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बीज की बुवाई/पौधों की रोपाई :-

बीजों की बुवाई के लिए सबसे पहले जमीन को बीजों की बुवाई के योग्य बनाया जाता है। इसके लिए किसान एक नर्सरी तैयार करें और मुख्य खेत में रोपाई करें। सबसे पहले किसान पौधों को नर्सरी में तैयार करें इसके बाद उसे जड़ से उखाड़ कर खेत में ले जाकर उसकी रोपाई करें रोपाई में पौधों की बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए। एक जगह पर एक से दो पौधों की ही रोपाई की जाए।

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जिस खेत में पानी ना भरता हो उस खेत में धान की रोपाई श्रीविधि से करें। इस विधि में खेत में पानी ना भरने दें इसमें खेत की समय-समय पर सिंचाई करते रहें इस विधि में सिंचाई करने के लिए गेहूं के जैसे ही सिंचाई करें। और धान का प्रबंधन सभी धान की तरह करें।
पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

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रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

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 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

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इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

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 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

मौसम विभाग के अनुसार इस बार पर्याप्त मात्रा में होगी बारिश, धान की खेती का बढ़ा रकबा

मौसम विभाग के अनुसार इस बार पर्याप्त मात्रा में होगी बारिश, धान की खेती का बढ़ा रकबा

मौसम विभाग के अनुसार इस बार बारिश पिछले बीते हुए सालो की अपेक्षा ज्यादा होगी. इस बार बारिश की कमी के कारण सुखा नही पड़ेगा, न ही पानी के कमी के कारण फसलों का नुकसान होगा. इस बात से किसान बहुत खुश है. क्योंकि बारिश होने से फसल अच्छी होगी. जिसको देखते हुए खरीफ फसल के धन का रकबा बढ़ा दिया गया है. धान की खेती के लिए किसान तेजी से जुटे है. कुछ किसान धान की नर्सरी डाल चुके है वही कुछ किसान नर्सरी जल्द ही डालने वाले है. कृषि विभाग के अनुसार पहले धान की खेती के लिए 35 हजार हेक्टेयर निर्धारित किया गया था. परंतु मानसून को देखते हुए और मौसम विभाग के अनुमान की इस बार बारिश भरपूर होगी, इसकी वजह से 20 हजार हेक्टेयर रकबा बढ़ा दिया गया है. जिस वजह से अब 55 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होगी. जिसके लिए 700 क्विटल बीज सरकारी बीज भंडार से बांटा जा चुका है. 200 क्विटल ढैंचा का बीट खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए बीज भंडार से किसानों को बांटा जा चुका है. पैदावार को बढ़ाने के लिए ढैंचा की बुआई की जाती है. किसान इस बार जी जान से लगे है की पैदावार अच्छी हो क्योंकि बीते वर्ष के मुताबिक इस साल गेहूं की पदावर कम हुई है.
डीएसआर तकनीकी से धान रोपने वाले किसानों को पंजाब सरकार दे रही है ईनाम

डीएसआर तकनीकी से धान रोपने वाले किसानों को पंजाब सरकार दे रही है ईनाम

12 हजार हेक्टेयर जमीन में डीएसआर तकनीकी से धान की खेती करने का शासन ने दिया है लक्ष्य

चंडीगढ़।
पंजाब सरकार कृषि विभाग डीएसआर तकनीकी (डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस तकनीक) या सीधी बिजाई से धान की खेती करने वाले किसानों को ईनाम दे रही है। इस तकनीकी से धान की रोपाई करने से 35 फीसदी पानी की बचत होती है। जिसे ध्यान में रखते हुए शासन द्वारा पूरे राज्य के किसानों को 12 लाख हेक्टेयर जमीन में डीएसआर तकनीकी से धान की फसल करने का लक्ष्य दिया है। हालांकि अभी 77 हजार हेक्टेयर में ही डीएसआर तकनीकी से धान की खेती की जा रही है, जो लक्ष्य से काफी पीछे है। राज्य सरकार ने इस तकनीकी से धान की खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 1500 रुपए ईनाम देने की घोषणा की है।

बढ़ा दी गई है डीएसआर से खेती करने की तारीख

- कृषि विभाग ने धान की सीधी बुवाई करने के लिए पहले 30 जून तक का समय दिया था। लेकिन लक्ष्य से पीछे रहने के कारण इसकी तारीख अब 4 जुलाई कर दी गई है। जानकारी मिल रही है कि अभी इसका समय और बढ़ाया जाएगा। ताकि ज्यादा से ज्यादा जमीन पर डीएसआर तकनीकी से धान की फसल हो सके।

जानें क्या है डीएसआर तकनीकी?

- यहां किसानों को यह समझने की जरूरत है कि आखिर डीएसआर तकनीकी क्या है? डीएसआर तकनीकी में धान के बीज को सीधे खेत में लगाया जाता है। इसमें धान की नर्सरी बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। जिसे प्रसारण बीज विधि (डीएसआर) कहा जाता है। इसके लिए खेत की जमीन समतल होनी चाहिए।

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'प्रसारण बीज विधि' के फायदे एवं नुकसान

- प्रसारण बीज विधि (डीएसआर) के तहत धान की फसल करने वाले किसानों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इस विधि से खेती करने के कितने फायदे एवं नुकसान हैं।

फायदे

- डीएसआर तकनीकी से धान की फसल को सीधे ड्रिल किया जाता है। इससे पानी की 35% तक बचत होती है। इसमें बासमती किस्म के धान की अच्छी रोपाई होती है। इस विधि से धान की खेती करने पर सरकार से ईनाम दिया जा रहा है।

नुकसान

- डीएसआर तकनीकी से धान की फसल करने से खेत में खरपतवार होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। धान रोपाई की अपेक्षा फसल लेट हो सकती है। किसानों के लिए पानी की सप्लाई भी बेहतर ढंग से करना मुश्किल हो सकता है। ------- लोकेन्द्र नरवार